October 18, 2011

कागज़ की कश्ती, वो बहता पानी

बारिश के पानी की तरह पाक तुम्हारे वो साज़,
चिलचिलाती धुप में एक साया तुम्हारी आवाज़,
छिपे हुए गमो में मद्धम मुस्कान का पैगाम देती,
शुकून का एहसास तुम्हारी वो अमर आवाज़,

होश वालो को बेखुदी का मतलब समझाते ग़ज़ल,
झुकी नज़रो की खामोशिया बयां करते वो हसीं नगमे,
दिल की दवा करू तो करू कैसे, ज़हन में घुलते तेरे वो बोल,
ना चिट्ठी ना सन्देश, फासलों को मिटाते तेरे गीत अनमोल!

4 comments:

Ramesh said...

Beautiful tribute. Poetic weaving of his materpieces - superbly done Vishal.

Vishal said...

@ Ramesh - thank you! masterpieces from one great master! :)

Prem said...

This one is really creative and the best tribute messages I have read for him.

Vishal said...

@Prem - thanks for the kind words. His magic is too awesome.