June 3, 2012

चिट्ठी आई है...

मिट्टी की महक तुम्हे क्या बताऊ मैं,
खुशबू से लिपटी चादर ओढाऊ कैसे मैं,
पल पल जी चाहे जिस पल को जीना,
उस पल के रूबरू कराऊ कैसे मैं...

तुम छोड़ गए थे प्यारा सा बचपन,
उन यादो के सहारे बहलता अब ये मन,
परदेसी हवाओं में घुल के रह ना जाना तू,
लहराती पछुआ आज भी करती साँसों को नम...

पल बढ़ कर चले गए तुम य़ू दूर,
आँखों की रौशनी जैसे हो गयी हो दूर,
तुम्हारी कामयाबी से चहकता है ये दिल,
पास ना होने से मचलता भी है ये दिल...

कभी तुम आओगे लेके खुशियों की बहार,
पल पल है हमें तो बस वो इंतज़ार,
पल पल जी चाहे जिस पल को जीना,
उस पल के रूबरू कराऊ कैसे मैं...

2 comments:

Ramesh said...

Wah Wah . बहुत दिनों के बाद चिट्टी आई है !

I realise how rusted my Hindi has become that I had to struggle to follow you. Please write more. Let me relearn Hindi from a master !

Vishal said...

@ Ramesh - You are far too kind, I am not a master.. just enjoy writing some pieces in hindi+urdu. :) :) I wish I could write everyday!