October 27, 2012

समझौतों का सिलसिला चलता रहा...

ज़िन्दगी य़ू ही चलती रही, यादों का शमा बंधता रहा,
कभी आने वालों का कभी जाने वालों का मेला लगता रहा,
ख़्वाबों में सजायी थी, खुशियों से भरी कायनात मैंने,
हकीक़त के पन्ने उलटते रहे, अनजान सा सफ़र चलता रहा,

समझौतों का सिलसिला चलता रहा...

वो कहते है, थके न तू रुके न तू, गति में कभी झुके न तू,
मेले के बीच गुमनामियों में, खुद को पत्थर बना न तू,
रुका नहीं थका नहीं ये तन, ना कम हुई माथे से कभी ये शिकन
लहरों को चीरता हवाओं को मोड़ता, बेबाक ये कारवां चलता रहा,

समझौतों का सिलसिला चलता रहा...

शिकवे शिकायत सुनाने को, दो पल ठहरने को दिल कराहता रहा,
खुद में खुद को ढूँढने का वक़्त, ये ज़हन तलाशता रहा,
कभी हम तो कभी वो ना थे, सुनने सुनाने वाले कभी मंज़र ना थे,
फिर भी इंतज़ार के धुंध में, बहारो का पुलिंदा बनता रहा,

समझौतों का सिलसिला चलता रहा...