ज़िन्दगी य़ू ही चलती रही, यादों का शमा बंधता रहा,
कभी आने वालों का कभी जाने वालों का मेला लगता रहा,
ख़्वाबों में सजायी थी, खुशियों से भरी कायनात मैंने,
हकीक़त के पन्ने उलटते रहे, अनजान सा सफ़र चलता रहा,
समझौतों का सिलसिला चलता रहा...
वो कहते है, थके न तू रुके न तू, गति में कभी झुके न तू,
मेले के बीच गुमनामियों में, खुद को पत्थर बना न तू,
रुका नहीं थका नहीं ये तन, ना कम हुई माथे से कभी ये शिकन
लहरों को चीरता हवाओं को मोड़ता, बेबाक ये कारवां चलता रहा,
समझौतों का सिलसिला चलता रहा...
शिकवे शिकायत सुनाने को, दो पल ठहरने को दिल कराहता रहा,
खुद में खुद को ढूँढने का वक़्त, ये ज़हन तलाशता रहा,
कभी हम तो कभी वो ना थे, सुनने सुनाने वाले कभी मंज़र ना थे,
फिर भी इंतज़ार के धुंध में, बहारो का पुलिंदा बनता रहा,
समझौतों का सिलसिला चलता रहा...
3 comments:
Seems like u hav ccpsted my life... If feelings have words,you are the perfect writer !! An artist can draw the situation having your write ups in hand... Really personified!!
Aha. You are back after a while. Nice verse as Madhushree says. Even I could understand , for there wasn't much Urdu :)
May it चलता रहा even more :)
@ Ramesh, Madhu - Sorry for being away from my dear space for sometime now and every more sorry for responding to your priceless comments .. thanks and look forward to write few more threads!
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