ऐ ख़ुदा बख्शी है, तूने एक उड़ान ऐसी भी,
मोतियों से पिरोयीं है, तूने ये जहान ऐसी,
कितनी अनोखी है, यहाँ हर एक की कहानी,
ज़िन्दगी कभी लगती, बेगानी तो कभी सुहानी,
बेखबर क्या लिखा, हाथ की टेढ़ी लकीरों में,
ख़्वाबो का पुलिंदा, बाँध लिया मुसाफिरों ने,
मुकम्मल होते ख्वाब, बन गए मील का पत्थर,
अधूरे ख्वाब रह गए, अनकही दास्ताँ बनकर,
अधूरे ख़्वाबो में छिपे थे, कुछ सच्चे मायने,
हौसला और उम्मीद, निखर के आये सामने,
ख़ुदा ने बख्शी थी, रहमत में सिर्फ़ एक ज़िन्दगी,
ख़ुशी और ग़म के धारो में, बाट दी हमने ज़िन्दगी,
दिल तो दिल है, उड़ते रहना इसकी फिदरत है,
मोतियों से ज़िन्दगी को पिरोना एक जरुरत है...
The day Table Tennis died
3 years ago
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