मानव, संसार में अद्वितीय तेरी क्षमता है,
इश्वर ने तुझे दी अनोखी बुध्हिमता है,
क्षितिज के उस पार तक पहुची है तेरी कल्पना,
चाँद तारे तक गाते तेरी गुणवत्ता है,
जीता इस युग में सब कुछ तुने, चाह था जो भी,
फिर क्यों उत्तेजना की आंधी तेरे मन में समाती,
क्यों बर्बर लोभ है धन दौलत सोने-चाँदी की,
क्यों यह दहशत यह आतंक मानवता को मिटाने की,
अमन की छवि चंद किताबो में छिप ना जाए,
परोपकारिता हर फटते बम से झुलस ना जाए,
मित्रता फेसबुक के पन्नो तक सिमित ना रह जाए,
अपनेपन का साक्षात् माध्यम कही लुप्त ना हो जाए,
काय काप उठती है परिवर्तन के इस दौर में,
साँसे सहम जाती है, भयानक इस सोच से,
एक नयी ऊर्जा, नयी सुबह की आशा है बन्दे को,
जब गले लगाएगा मानव, फिर से इस प्रकृति को इन परिंदों को...
On the Road
6 years ago
2 comments:
Philiosophical verse. - Nice to see your verses in Hindi mixed amongst the other posts.
@ Ramesh - thank you ! :)
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