मेरी तन्हाईयों में तेरी यादों का पेहरा है,
जिसने नींद उड़ाई वो मासूम सा एक चेहरा है,
जाने क्यों पल पल परछाईँयों में देखता हूँ मैं,
क्या यही प्यार है जो सागर से गहरा है,
वक़्त इन वादियों में आके इस कदर ठहरा है,
मानो बर्फीली चादर के बीच कही हमारा डेरा है,
तुम्हारी एक मुस्कान से पिघल क्यों जाता हूँ मैं,
क्या यही प्यार है जो सोने से सुनहरा है,
दूर होके भी रहते तुम हरदम दिल के पास पास,
खफा सी फिजा को भी रोशन करते तुम्हारे एहसास,
सोचा कभी खुदा से ज़ाहिर करू अपनी नाराजगी,
शायद हां शायद यही प्यार है जो धनक से रुपहला है!
The day Table Tennis died
3 years ago
3 comments:
Wah Wah. Yahi pyar hai !!
You write very good verses in Hindi. I am not a Pandit, but for a layman your verses sound very nice. Write more.
:)
@ Ramesh - Thanks once again! Just few words and all I do is connect them via my thoughts. I am glad that they sound good, but this one was very very special (first four line of this verse was among first few poems that I had written some 5 years back) . Will definitely ontinue writing more... :-)
@ Anon - :) You are truly special!
Post a Comment